विदेशों ने जाना जिले में पैदा हो रही औषधि फसलों का महत्व, कई देशों में बढ़ी मांग

 विदेशों ने जाना जिले में पैदा हो रही औषधि फसलों का महत्व, कई देशों में बढ़ी मांग

Medicinal plants will be delivered at home प्रत्येक गांव-ढाणी औैर घर-घर में पहुंचाएंगे औषधीय पौधे
Medicinal plants will be delivered at home प्रत्येक गांव-ढाणी औैर घर-घर में पहुंचाएंगे औषधीय पौधे

मंदसौर.
जिले में औषधिय फसलों की खेती का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है। इसके पीछे वजह भी है कि अंतराष्ट्रीय बाजार में जिले की माटी में पैदा हो रही औषधी फसलों की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। असालिया जहां गल्फ तो इसबगोल यूरोपियन कंट्री में बहुतायत में जाता है। मानव शरीर को स्वच्थ रखने के लिए इनके कारगर गुणों के कारण इनकी मांग लगातार बढ़ती जा रही है। लेकिन जिले में जो औषधी खेती होती है वह परंपरागत खेती के साथ किसान कुछ हिस्सें में करते है। जिले की मिट्टी भले ही इसके लिए उपजाऊ है ओर वातावरण भी अनुकूल है लेकिन जिले का उन्नत किसान औषधि खेती को मुख्य नहीं बल्कि परंपरागत के साथ करते है। औषधि फसलों को लेकर जिले में संभावनाएं अपार है लेकिन प्लेटफॉर्म की जरुरत है। विदेशों तक अपनी साख बनाने वाली जिलें में हो रही औषधि फसलों की खेती से किसान कम लागत और मेहनत में बेहतर दाम ले सकता है।
जिले में होने वाली औषधि फसलों की इन विशेषताओं के कारण विदेशों में है मांग
असालिया:-इसमें कैल्शियम व आयरन अधिक होता है। इसलिए यह १८ साल तक के बच्चों को देते है। जिससे हाईट बढऩे से लेकर बच्चा स्वस्थ रहे तो पशुपालक भी इसका उपयोग करते है जिससे दूध उत्पादन बढ़ता है। गल्फ कंट्री जिसमें ओमान, दुबई, कतर सहित अन्य जगहों पर इसकी मांग अधिक होती है।
इसबगोल:-यह सामान्य तौर पर बाजार में इसबगोल की भूसी के नाम से उपलब्ध होती है। इसके भी कई गुण है। यह शरीर के लिए कई मायनों में लाभदायक है। इसकी मांग यूरोपियन कंट्री में अधिक होती है।
अश्वगंधा:-यह जोड़ो के दर्द से निजात दिलाने के लिए उपयोगी होती है। तो वहीं तंत्रिका तंत्र को भी एक्टिव रखते हुए ठीक रखती है।
कालमेघ:- यह लीवर से जुड़े मामलों के लिए कारगर होती है। यह नीम से भी कई गुना अधिक कड़वा होता है लेकिन इसके गुण भी उतने ही अच्छे है। इससे लीवर स्वस्थ रहता है और पाचन तंत्र भी ठीक रहता है। तो
मानव शरीर भी स्वस्थ रहता है।
तुलसी:-तुलसी का उपयोग मुख्य रुप से खांसी-सर्दी से जुड़ी बीमारियों के अधिक होता है। यह दो प्रकार की होती है एक राम-श्याम तुलसी जो घर-आंगन में होती है और दूसरी खेती वाली जो किसान करते है। किसान को एक हैक्टेयर में २० क्विंटल तक उत्पादन इसका मिल जाता है। इससे प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। काड़े के रुप में इसका अधिक उपयोग इसलिए होता है।

Comments

Popular posts from this blog

स्व. श्री कैलाश नारायण सारंग की जयंती पर संपूर्ण देश में मना मातृ-पितृ भक्ति दिवस

श्री हरिहर महोत्सव समिति के अध्यक्ष बने राजेंद्र शर्मा

सनातन संस्कृति की रक्षा में संतों का अद्वितीय योगदान है - मुख्यमंत्री डॉ. यादव