देशभर में नए साल की धूम है। कोरोना के कारण दो साल से घरों में दुबके लोग निकल पड़े हैं ख़ुशियाँ मनाने।
देशभर में नए साल की धूम है। कोरोना के कारण दो साल से घरों में दुबके लोग निकल पड़े हैं ख़ुशियाँ मनाने। न कोई खर्च की परवाह, न छुट्टियों की। परिवार सहित ख़ुशियों को दोगुना करने की ठान ली है सबने। कहीं जंगल सफ़ारी, कहीं पहाड़ों पर बर्फ़ और कहीं रेगिस्तान का मज़ा ले रहे हैं। देश के हर राज्य में पर्यटक कई गुना बढ़ गए हैं। उत्तराखण्ड में बर्फ़ कम है लेकिन हिमाचल के पहाड़ बर्फ़ के नर्म गद्दे बिछाए लोगों के स्वागत के लिए आतुर हैं। नदियां रातभर चिल्लाती रहती हैं और तारे बुझते ही नहीं। चाँद नदी को आइना बनाकर अपनी सुंदरता पर इठलाता रहता है। सूरज दबा- दबा सा रहता है। कभी दिखता है, कभी छिप जाता है। कश्मीर तो स्वर्ग ही था, अब स्वर्ग से भी सुंदर हो गया है। लोग धरती पर स्वर्ग देखने यहाँ आ रहे हैं।
राजस्थान के तो क्या कहने! पर्यटकों के लिए रेगिस्तान में बस्तियाँ बसाई गई हैं। सुबह का सूरज जब निकलता है तो लगता है रेत के महल पर किसी ने सुंदर, सुर्ख़ लाल ग़ुब्बारा टांगा हो! चाँदनी रात में रेत जब चमकती है तो लगता है- ऊपर वाले ने यहाँ सोने कि किरचें बोई हैं। टैंटों में नृत्य के साथ राजस्थानी लोकगीतों की बहार होती है - पधारो म्हारे देस…!
उदयपुर और जोधपुर के हाल निराले हैं। उदयपुर में झीलें बाँहें फैलाए बुलाती हैं और जोधपुर का क़िला हमें सिर ऊँचा करके चलना सिखाता है। उधर केरल में समुद्र के बैक वॉटर में रातभर का नाव पर सफ़र अलग ही होता है। नाव में नहाना, खाना और वहीं - कहीं, किसी गाँव के किनारे नाव में ही सो जाना। आनंद ही अलग है।
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