अब घर ही छुपा दिए:चकाचौंध में बाधक न बने, इसलिए झोपड़ियों के बाहर बना दी दीवार; दो महीने पहले बिजली भी काटी


 दीवार फिल्म का मशहूर डायलॉग है, जिसमें एक भाई दूसरे को अपनी धन-संपत्ति और वैभव का घमंड दिखाता है। पूछता है आज मेरे पास गाड़ी है, बंगला है, बैंक बैलेंस है, तुम्हारे पास क्या है? जवाब मिलता है- मेरे पास मां है। यही सवाल यदि आज शहर में पूछा जाए कि यहां प्रवासी भारतीय सम्मेलन हो रहा है, इन्वेस्टर समिट होगी, इसमें गरीबों के लिए क्या है- जवाब मिलेगा, उनके लिए दीवार है। एयरपोर्ट रोड पर 1998 में सेंट्रल स्कूल के सामने की तरफ 30 परिवारों को राजीव आश्रय योजना के तहत 30 साल के लिए पट्‌टे दिए गए थे। उनकी झोपड़ियां सड़क से लगी हुई हैं।

प्रवासी भारतीय सम्मेलन, इन्वेस्टर्स समिट में आने वाले अतिथियों की आंख में इन झोपड़ियों का अंधेरा चुभ न जाए। इसलिए उनके बाहर प्रशासन ने लोहे की दीवार खड़ी कर दी है। उस पर खूबसूरत पेंटिंग की जा रही है, जिसके जरिये कच्चे-पक्के झोपड़े, इधर-उधर उछलकूद मचाते बच्चे और वक्त-बेवक्त बाहर खटिया डालकर आराम फरमाते बुजुर्गों के साथ उनकी गरीबी और बेराेजगारी तक पर पर्दा डाल दिया गया है। कुछ लोग मजदूरी के लिए गुजरात गए हैं, कुछ यहीं छोटा-मोटा काम करते हैं। कभी उनके घर मुख्य सड़क से नजर आते थे, अब बीच-बीच में तीन-चार फीट की गैप भर बची हैं। अफसरों को उम्मीद है कि इतनी सी जगह से इंदौर की शान पर लगा यह पैबंद नजर नहीं आएगा। इतना ही नहीं, दो महीने पहले इनकी बिजली भी काट दी गई थी। इनके घरों में अंधेरा पसरा हुआ है। इस बारे में महापौर पुष्यमित्र भार्गव का कहना है कि एयरपोर्ट के बाहर सौंदर्यीकरण चल रहा है। उसमें किसी खास बस्ती को छुपाने का कोई उद्देश्य नहीं है। लंबे हिस्से में काम चल रहा है।

अफसरों ने कहा- बड़े-बड़े लोग आ रहे, कैसा घर रखते हो, क्या कहेंगे

बस्ती में रहने वाली सुनीता कहती है, दो महीने पहले अचानक बिजली काट दी। पूछा तो बोले- तीन लाख रुपए देने पर ही मीटर लगेंगे। हर घर से 7 हजार मांग रहे हैं। सभी घरों के पास पट्‌टे हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही। शैतानसिंह, प्रकाश और करण कहते हैं, दीवार एक महीने से बन रही है। कुछ अफसर आए थे, कहने लगे बड़े-बड़े लोग आ रहे हैं, तुम ऐसा घर रखते हो, लोग क्या कहेंगे।

दुकानों के बाहर भी बना रहे दीवार, लोग बोले-हम सड़क पर आ जाएंगे

एयरपोर्ट के ठीक सामने, सर्विस रोड के लिए पटेल कॉलोनी के करीब 35 मकानों के आगे का हिस्सा तोड़ दिया गया है। यहां कई लोगों की दुकानें हैं। मुख्य मार्ग से कोई दुकान नहीं दिखेगी। चाय की दुकान चलाने वाले संतोष चौधरी कहते हैं, कॉलोनी 1971 की बसी है। टाउन एंड कंट्री प्लानिंग तो 76 में आया। यहां 30-40 दुकानें हैं। ज्यादा पैसे देकर मेन रोड पर प्लॉट लिया था। दुकान बंद हो गई तो सड़क पर आ जाएंगे।

46 हजार की किस्त कहां से चुकाएंगे

कृष्णा लखन जायसवाल कहती हैं कि तीन मंजिला मकान पर 40 लाख का लोन लिया है। 46 हजार रु. महीने की किस्त दुकान से ही चुकाती हूं। दुकान बंद हो गई तो कहां से लाऊंगी। मई में निगम ने नोटिस दिया था। हम मुआवजे के लिए कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं।

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