श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह विवाद में मथुरा कोर्ट ने सर्वे का आदेश दिया, पूरा मामला जानिए
याचिका में क्या मांगें थीं?
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जिला कोर्ट का यह आदेश 'हिंदू सेना' के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गु्प्ता की याचिका पर आया है. याचिका में शाही ईदगाह परिसर पर कब्जे और वहां मौजूद ढांचे को गिराने की मांग की गई थी. कोर्ट ने मामले में सभी पक्षों को नोटिस जारी किया है.
याचिका में विष्णु गुप्ता ने कहा था कि श्री कृष्ण मंदिर को तोड़े जाने के बाद 13.37 एकड़ परिसर में मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर मस्जिद बनाई गई थी. याचिका में 1968 के उस समझौते को भी रद्द करने की मांग की गई, जो श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही ईदगाह के बीच हुई थी. याचिकाकर्ता ने इस समझौते को अवैध बताया था.
याचिकाकर्ता के विष्णु गुप्ता के वकील शैलेष दुबे ने मीडिया को बताया,
"हमने कोर्ट से तीन मांग की थी. ठाकुर जी की जो 5 हजार साल पुरानी 13.37 एकड़ जगह थी, इसमें अवैध रूप से शाही ईदगाह का निर्माण किया गया था. इस पर 1967 में भी केस हुआ था, जिसके बाद एक समझौता हो गया था. जो अवैध था. हमने उस समझौते को निरस्त करने को कहा है. शाही ईदगाह को गिराकर जगह सौंपने की मांग की गई थी."
कई और याचिकाओं पर सुनवाई जारी
मथुरा कोर्ट में इस विवाद से जुड़ी कई दूसरी याचिकाओं पर भी सुनवाई जारी है. लखनऊ की रहने वाली रंजना अग्निहोत्री ने भी मथुरा सेशन्स कोर्ट में 13.37 एकड़ ज़मीन के मालिकाना हक को लेकर याचिका दायर की थी. उन्होंने कोर्ट से मांग करते हुए कहा कि शाही ईदगाह मस्जिद को हटाया जाए क्योंकि मस्जिद की जगह केशव देव मंदिर था, जिसे बाद में गिरा दिया गया था. कोर्ट ने मई 2022 में शाही ईदगाह मस्जिद के भीतर सर्वे कराने की मांग वाली याचिका भी स्वीकार की थी. याचिका में कहा गया था कि मस्जिद श्रीकृष्ण जन्म भूमि की जमीन पर बनी है.
इससे पहले सितंबर 2020 में सिविल कोर्ट ने ईदगाह हटाए जाने की याचिका खारिज कर दी थी. कोर्ट ने तब कहा था कि इस मसले पर 1968 में ही समझौता हो चुका है. अब याचिका दायर करने का कोई मतलब नहीं है. दूसरी बात, 1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट भी इस याचिका को स्वीकार करने की इजाजत नहीं देता. इस कानून के मुताबिक, 15 अगस्त 1947 के बाद जो धार्मिक स्थल जहां पर है, उसकी स्थिति में बदलाव नहीं किया जा सकता. राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को इस एक्ट के दायरे से बाहर रखा गया था. इसके पीछे कारण यह था कि ये विवाद उस वक्त कोर्ट पहुंच चुका था, जब यह एक्ट बना.
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